पाँच दिवसीय माँग मानने से आईबीए का साफ़ इनकार - Kamlesh Chaturvedi

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Wednesday, July 22, 2020

पाँच दिवसीय माँग मानने से आईबीए का साफ़ इनकार

जैसी कि कल आशंका व्यक्त की थी, विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एक बार फिर बैंक कर्मियों के हितों के तताकथित ठेकेदार अगले 5 वर्षों के लिए बैंक कर्मियों के दुर्भाग्य पर अपनी सहमति पर मोहर लगाने जा रहे हैं । कल देर रात तक चली यूएफ़बीयू के घटकों की बैठक के बारे में जो अपुष्ट सूचना मिली है उसके अनुसार एआईबीईए, एनसीबीई और AIBOC ने आज 15% वेतन वृद्धि पर सहमति पर हस्ताक्षर का मन बना लिया है - कार्यरत बैंक कर्मियों की प्रमुख सप्ताह में पाँच दिवसीय माँग मानने से आईबीए ने साफ़ इनकार कर दिया है और बैंक कर्मियों के तताकथित हितैषियों को आईबीए का यह रूख स्वीकार है ।
दयनीय जीवन व्यतीत कर रहे सेवा निवृत्त बैंक कर्मियों के पेन्शन निर्धारण की माँग को फिर से अनदेखा कर दिया गया है - केवल पारिवारिक पेन्शन में बढ़ोत्तरी और सुधार को सरकार के पास संस्तुति के साथ भेजने पर सहमति बनी है । 
लोड फ़ैक्टर पर काफ़ी देर तक चर्चा हुई -वर्तमान 7.75% के विशेष भत्ते को जोड़ते हुए कम से कम 9.75% लोड मूलवेतन में जोड़ने के  अनेक घटकों  के सुझावों को दरकिनार करते हुए पहले से निर्धारित 2% लोड में 1-2 प्रतिशत की वृद्धि होने की सम्भावना है । 
विभिन्न घटकों का रूख क्या है यह जान लेना भी ज़रूरी है -AIBEA का रूख तो बड़े नेता जी यह कह कर पहले ही स्पष्ट कर चुके थे कि बैंक कर्मियों का वेतन संतोषजनक है, उनके काम के घण्टे कम हैं - NCBE का रूख भी पहले से पता था कि उनकी रुचि स्टेट बैंक कर्मियों के लिए अलग से कुछ पाने की अभिलाषा में शेष बैंक कर्मियों के लिए एआईबीईए का समर्थन करना है लेकिन कभी CPC फ़ोरमूले के आधार पर वेतन निर्धारण और सेवा निवृत्त बैंक कर्मियों को पेंसन निर्धारण का भरोसा देने वाली AIBOC ने जिस तरह से अपना रूख बदल समर्पण करने का फ़ैसला लिया वह समझ के परे और पीड़ादायक है -एआईबीओए को तो ख़ैर बड़े नेता जी का अन्ध समर्थन करना ही है - INBOC के मक्कड जी, NOBO के श्री विराज टिक्केकर और एनओबीडबल्यू के उपेन्द्र कुमार जी ने तो यह कह कर कि जिधर बहुमत होगा वे उधर होंगे -कहते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि उनके अपने कोई विचार हैं ही नहीं -BEFI और INBEF ने प्रबल विरोध किया लेकिन इनके पास इतना संख्याबल ही नहीं है जिसके ज़रिए ये बहुमत के नशे में घमण्ड से भरे नेताओं पर दवाब बना सकें । 

कुल मिलाकर अतीत की पुनरावृत्ति होने जा रही है -बैंक कर्मियों की उस आशा पर तुषारापात होने जा रहा है जो उन्होंने 11वें द्विपक्षीय समझौते के ज़रिए अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलते देखने की की थी ।

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